सोमवार, 11 अगस्त 2014

एकांकी

एक समय था जब मनुष्य के पास पर्याप्त अवकाश था । वह रस लेकर महाकाव्य का अध्ययन करता था , नाट्यगृहो मेँ बेठकर नाटक देखा करता था । जब उपन्यास लिखे जाने लगे तो मोटे -मोटे उपन्यासो को कई दिनोँ मेँ वह रूचिपुवृक पढता था । इस तरह उसे आनंद मिलता, उसका मनोरंजन ओर ज्ञान वर्धन होता था । लेकिन आज का युग पहले से बदल गया हे । यहाँ उद्योग - धंधे का युग हे । आज मनुष्य के पास पहले की तरह अवकाश नहीँ हे । वह बहुत व्यस्त हो गया हे । महाकाव्योँ ओर मोटे - मोटे उपन्यास को पढने के लिए उसे पर्याप्त समय नहीँ मिलता । इसलिए थोड़े  समय मेँ पढ़ी जाने वाली कहानियाँ ओर थोड़े समय मेँ खेले जाने वाले एकांकी के प्रति उसका झुकाव होना  स्वाभाविक हे ।

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